ISRO ने फिर से कमाल कर दिया। उनका सबसे छोटा रॉकेट SSLV ने शुक्रवार को अपनी आखिरी टेस्ट फ्लाइट में दो उपग्रहों को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में पहुंचा दिया। ये उपग्रह अब धरती से करीब 475 किलोमीटर ऊपर चक्कर लगा रहे हैं।
इस सफलता के बाद SSLV अब ISRO के नियमित रॉकेटों की टीम में शामिल हो जाएगा। यानी अब ये छोटा रॉकेट भी बड़े भाइयों की तरह अंतरिक्ष में सामान पहुंचाने का काम करेगा।
ISRO के लिए ये बहुत बड़ी उपलब्धि है। छोटे रॉकेट का सफल होना मतलब अब छोटे उपग्रह लॉन्च करना और भी आसान और सस्ता हो जाएगा।
ISRO: Table of Contents
ISRO: SSLV रॉकेट सफल हो गया है
जब SSLV रॉकेट सफल हो गया है, तो ISRO इसकी तकनीक को प्राइवेट कंपनियों को देने वाला है। ये एक तरह से रॉकेट बनाने का रेसिपी शेयर करने जैसा है।
इसका फायदा ये होगा कि अब प्राइवेट कंपनियां भी इस तकनीक का इस्तेमाल करके ढेर सारे रॉकेट बना सकेंगी और उन्हें लॉन्च कर सकेंगी। इससे स्पेस में जाना और भी आसान और शायद सस्ता हो जाएगा।
ISRO का ये कदम बहुत बड़ा है। ये दिखाता है कि वे चाहते हैं कि भारत में स्पेस का बिजनेस और भी बड़ा हो, और सिर्फ सरकारी संस्था ही नहीं, बल्कि प्राइवेट कंपनियां भी इसमें हिस्सा लें।
ISRO: मोदी जी ने भी इस सफलता पर अपनी खुशी जताई है।
मोदी जी ने भी इस सफलता पर अपनी खुशी जताई है। चलो, मैं आपको उनके मैसेज को आसान भाषा में बताता हूं:
मोदी जी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाला। उन्होंने लिखा:
“वाह, क्या बात है! हमारे वैज्ञानिकों और इंडस्ट्री ने कमाल कर दिया। बहुत-बहुत बधाई सबको!”
फिर उन्होंने कहा कि उन्हें बहुत खुशी है कि अब भारत के पास एक नया रॉकेट है।
मोदी जी ने ये भी कहा कि ये SSLV रॉकेट बहुत किफायती है, यानी इससे पैसे की बचत होगी। उन्होंने बताया कि ये रॉकेट भविष्य के स्पेस मिशन में बहुत मददगार साबित होगा।
और सबसे अच्छी बात, मोदी जी ने कहा कि इस रॉकेट से प्राइवेट कंपनियों को भी फायदा होगा। वे भी अब स्पेस बिजनेस में आगे आ सकेंगी।
चलो ISRO के बॉस सोमनाथ जी ने क्या कहा,
सोमनाथ जी बहुत खुश लग रहे थे। उन्होंने कहा:
“देखो, हमने SSLV रॉकेट को तीसरी बार सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया। इसका मतलब है कि अब ये रॉकेट पूरी तरह से तैयार है।”
फिर उन्होंने एक बड़ी बात बताई। वे बोले:
“हम इस रॉकेट के निर्माण की तकनीक निजी क्षेत्र की कंपनियों को हस्तांतरित कर रहे हैं, जिससे वे इसका उत्पादन कर सकेंगी और बड़े पैमाने पर प्रक्षेपण कर सकेंगी।”
सोमनाथ जी ने आखिर में कहा:
“SSLV रॉकेट ने आकाश में एक नया तारा जगा दिया है।”
ISRO: सोमनाथ जी ने एक और बात बताई।
सोमनाथ जी ने एक और बात बताई। उन्होंने कहा कि वे VTM नाम के एक हिस्से पर और काम कर रहे हैं। ये काम धीरे-धीरे पूरा हो जाएगा।
अब VTM क्या है? चलो, इसे समझते हैं:
- VTM यानी Velocity Trimming Module। ये रॉकेट का आखिरी हिस्सा होता है।
- इसमें तरल ईंधन भरा होता है।
- इसका काम है उपग्रहों को सही जगह पर पहुंचाना। ये उपग्रहों की स्पीड को ठीक करता है ताकि वे सही कक्षा में जा सकें।
याद है, पहली बार जब SSLV लॉन्च हुआ था, तब कुछ गड़बड़ हुई थी? वो इसी VTM की वजह से हुई थी। उस वक्त एक सेंसर ने गलत जानकारी दी, जिससे VTM चालू नहीं हुआ। इसकी वजह से उपग्रह गलत जगह पहुंच गए थे।
अब ISRO इस VTM को और बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा है ताकि अगली बार ऐसी कोई गलती न हो।
सोमनाथ जी ने बताया कि इस बार सब कुछ एकदम सही हुआ।
सोमनाथ जी ने बताया कि इस बार सब कुछ एकदम सही हुआ। उन्होंने कहा:
आज का लॉन्च बिल्कुल किताब की तरह हुआ। मतलब, जैसा हमने सोचा था, वैसा ही हुआ।”
फिर उन्होंने बताया:
“हमारा रॉकेट उपग्रहों को बिल्कुल सही जगह पर ले गया। जहां हमने सोचा था, वहीं पहुंचा दिया।”
लेकिन वे पूरी तरह से निश्चित होना चाहते थे। इसलिए उन्होंने कहा:
“हमें लगता है कि सब कुछ सही हुआ है। लेकिन हम उपग्रहों को ट्रैक करेंगे। उसके बाद ही हम पक्का कह पाएंगे कि वे बिल्कुल सही जगह पर हैं।”
मतलब साफ है – इस बार SSLV ने अपना काम बहुत अच्छे से किया। सोमनाथ जी बहुत खुश लग रहे थे, लेकिन वे अंतिम पुष्टि का इंतजार कर रहे थे।
ISRO: इस बार SSLV रॉकेट ने दो उपग्रह लॉन्च किए थे।
इस बार SSLV रॉकेट ने दो उपग्रह लॉन्च किए थे। उनमें से एक था EOS-08। ये इस मिशन का सबसे महत्वपूर्ण उपग्रह था। अब इस EOS-08 के बारे में कुछ मजेदार बातें:
- ये उपग्रह 175 किलो का है। यानी एक मोटरसाइकिल जितना वजनी!
- इसे ‘प्रायोगिक उपग्रह’ कहा गया है। मतलब, ये एक तरह का टेस्ट उपग्रह है।
- सबसे खास बात – इस उपग्रह में तीन नई तकनीकें लगाई गई हैं। ये नई तकनीकें क्या हैं, वो तो ISRO ने नहीं बताया, लेकिन ज़रूर कुछ नया और रोमांचक होगा।
तो समझिए, EOS-08 सिर्फ एक उपग्रह नहीं है, ये एक तरह का फ्लाइंग लैब है। ISRO इसके जरिए नई-नई चीजें स्पेस में टेस्ट करेगा।
ISRO: EOS-08 उपग्रह एक हाई-टेक कैमरा की तरह है। च
- इस उपग्रह में एक खास कैमरा लगा है, जिसे EOIR कहते हैं।
- ये कैमरा दिन में भी और रात में भी तस्वीरें ले सकता है। ये इंफ्रारेड तकनीक का इस्तेमाल करता है, जो गर्मी को देख सकता है।
- अब इस कैमरे से क्या-क्या काम हो सकते हैं:
- आपदाओं पर नज़र रखना: जैसे बाढ़ या भूकंप
- पर्यावरण की निगरानी: जंगलों की हालत देखना
- आग का पता लगाना: जंगल में लगी आग को जल्दी पकड़ना
- ज्वालामुखी देखना: कब फटने वाला है, ये पता करना
- फैक्ट्रियों और बिजली के प्लांट पर नज़र रखना: ताकि कोई दुर्घटना न हो
मतलब, ये उपग्रह हमारी आंखों की तरह काम करेगा, जो ऊपर से सब कुछ देख रहा होगा और हमें खतरों से बचाएगा।
ISRO: इस उपग्रह के दूसरे खास हिस्से के बारे में बात करते हैं।
इस उपग्रह के दूसरे खास हिस्से के बारे में बात करते हैं। इसे GNSS-R कहते हैं। ये थोड़ा जटिल लग सकता है, लेकिन मैं इसे समझाता हूं.
- ये GNSS-R एक तरह का स्मार्ट रिसीवर है। ये GPS जैसे सिस्टम से आने वाले सिग्नल को पकड़ता है।
- अब ये सिग्नल सीधे नहीं आते, बल्कि धरती से टकराकर वापस आते हैं। ये रिसीवर उन्हें पकड़ता है।
- इन सिग्नल से हमें बहुत सारी जानकारी मिल सकती है, जैसे:
- समुद्र की सतह पर हवाओं की स्थिति
- मिट्टी में कितनी नमी है
- हिमालय में बर्फ और ग्लेशियर की स्थिति
- कहीं बाढ़ तो नहीं आ रही
- देश के अंदर झीलों और नदियों की स्थिति
ISRO: तीसरे पेलोड में एक खास UV डोसिमीटर है।
तीसरे पेलोड में एक खास UV डोसिमीटर है। इसका काम क्या है? ये गगनयान के क्रू मॉड्यूल की खिड़कियों पर पड़ने वाली UV किरणों को मापेगा। इससे हमें पता चलेगा कि अंतरिक्ष यात्रियों पर कितनी UV किरणें पड़ेंगी। ये जानकारी मिशन की तैयारी में बहुत मददगार होगी।
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