Lal Sagar (Red Sea) में जहाजों पर हमले जारी हैं। इसलिए, भारत से यूरोप को तेल भेजने के लिए एक लंबा और महंगा रास्ता चुना जा रहा है। अब जहाज अफ्रीका के चारों ओर घूमकर केप ऑफ गुड होप से होकर जा रहे हैं। यह रास्ता ज्यादा सुरक्षित है, लेकिन इससे समय और खर्च बढ़ जाता है।
पिछले कुछ महीनों में भारत से यूरोप जाने वाले तेल जहाजों का रास्ता बदल गया है।
पिछले कुछ महीनों में भारत से यूरोप जाने वाले तेल जहाजों का रास्ता बदल गया है। जून और जुलाई में तो कोई भी जहाज Lal Sagar (Red Sea) से नहीं गुजरा। यह एक बड़ा बदलाव है, क्योंकि पहले यही रास्ता सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता था।
पिछले पांच महीनों में भी यही चलन रहा है। हां, मार्च और मई में कुछ जहाजों ने Lal Sagar (Red Sea) का रास्ता लिया, पर वे अपवाद थे। बाकी सभी जहाज दूसरे रास्ते से गए।
पिछले साल के आखिर से, यमन में एक समूह जो ईरान का समर्थन करता है.
पिछले साल के आखिर से, यमन में एक समूह जो ईरान का समर्थन करता है, वह जहाजों पर हमला कर रहा है। ये हमले बाब अल-मंडेब नाम की जगह के पास हो रहे हैं। यह एक संकरा समुद्री रास्ता है जो Lal Sagar (Red Sea) और स्वेज नहर की तरफ जाता है।
यह रास्ता बहुत महत्वपूर्ण है। इससे होकर दुनिया भर का सामान और तेल एक जगह से दूसरी जगह पहुंचता है। यह सबसे छोटा रास्ता है जो अरब देशों, अफ्रीका के कुछ हिस्सों और अरब सागर को भूमध्य सागर से जोड़ता है।
हमला करने वाला समूह, जिसे हौथी कहा जाता है, कहता है कि वे सिर्फ इजरायल से जुड़े जहाजों को निशाना बना रहे हैं। उनका कहना है कि ये हमले गाजा में इजरायल की कार्रवाई के जवाब में किए जा रहे हैं।
व्यापार से जुड़े लोगों का कहना है कि जहाजों के रास्ता बदलने से कई परेशानियां हो रही हैं:
- समय ज्यादा लग रहा है: स्वेज नहर के बजाय केप ऑफ गुड होप से होकर जाने में 15-20 दिन ज्यादा लगते हैं।
- खर्च बढ़ गया है: लंबे रास्ते की वजह से माल ढोने का खर्च काफी बढ़ गया है।
- जोखिम बीमा महंगा हो गया है: खतरनाक इलाकों से गुजरने के लिए जहाज कंपनियों को ज्यादा बीमा खर्च देना पड़ रहा है।
इन सब कारणों से एशिया से यूरोप और उत्तरी अमेरिका के बीच माल भेजना महंगा हो गया है। इससे व्यापार पर बुरा असर पड़ रहा है।
Lal Sagar (Red Sea) में मुसीबत शुरू होने से पहले की बात है:
- भारत से यूरोप जाने वाले तेल के जहाज हमेशा एक ही रास्ता लेते थे।
- वे Lal Sagar (Red Sea) से होकर स्वेज नहर तक जाते थे। यह सबसे छोटा और आसान रास्ता था।
- अफ्रीका के चारों ओर घूमकर जाने वाला लंबा रास्ता कभी-कभार ही कोई जहाज लेता था।
मतलब, पहले सब कुछ आसान था। जहाज सीधे और जल्दी पहुंच जाते थे। लेकिन अब हालात बदल गए हैं।
एक जानकार व्यक्ति, विक्टर कटोना, जो तेल बाजार के बारे में अच्छी समझ रखते हैं,
एक जानकार व्यक्ति, विक्टर कटोना, जो तेल बाजार के बारे में अच्छी समझ रखते हैं,
- जहाज चलाने वाली कंपनियां अब सुरक्षा को सबसे ज्यादा महत्व दे रही हैं।
- वे ज्यादा पैसा खर्च करने और लंबा समय लगने की परवाह नहीं कर रहीं।
- इसलिए, स्वेज नहर का रास्ता अब भारत के निर्यातकों के लिए आम रास्ता नहीं रहा।
- इसका नतीजा यह हुआ है कि भारत से यूरोप को तेल और ईंधन का निर्यात कम हो गया है।
- पिछले साल जुलाई से दिसंबर और इस साल जनवरी से जून के बीच, यह निर्यात 25% कम हो गया है।
यह बताता है कि सुरक्षा की चिंता ने व्यापार को काफी प्रभावित किया है।
केप्लर नाम की कंपनी जहाजों की आवाजाही पर नजर रखती है। उनके आंकड़ों से पता चला है कि:
- जुलाई में भारत से यूरोप को ईंधन भेजने में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ।
- हर दिन लगभग 276,000 बैरल ईंधन भेजा गया। यह पिछले महीने के मुकाबले थोड़ा सा ज्यादा था।
- जून की तरह ही, जुलाई में भी सारे जहाजों ने लंबा रास्ता चुना।
- यह लंबा रास्ता अफ्रीका के चारों ओर घूमकर जाता है।
Lal Sagar (Red Sea): भारत यूरोप को पेट्रोल और डीजल जैसे ईंधन बेचता है।
भारत यूरोप को पेट्रोल और डीजल जैसे ईंधन बेचता है। पिछले कुछ महीनों में इसमें कमी आई है। दिसंबर 2023 में भारत रोजाना लगभग 4.25 लाख बैरल ईंधन यूरोप भेज रहा था, जो अब घटकर 2.5 से 3 लाख बैरल प्रतिदिन रह गया है।
लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है! भारत अभी भी कुल मिलाकर उतना ही ईंधन बेच रहा है जितना पहले बेचता था – रोजाना करीब 12 लाख बैरल। बस अब उसने अपना ध्यान दूसरी जगहों पर लगाया है। जो ईंधन पहले यूरोप जाता था, वो अब एशिया के देशों और ऑस्ट्रेलिया में बेचा जा रहा है।
तो मोटे तौर पर, भारत का ईंधन व्यापार अच्छा चल रहा है, बस उसने अपने ग्राहकों में थोड़ा बदलाव किया है।
कैटोना नाम के एक जानकार ने बताया कि अभी भारत ने अपना ध्यान एशिया पर लगाया है।
कैटोना नाम के एक जानकार ने बताया कि अभी भारत ने अपना ध्यान एशिया पर लगाया है। मतलब, भारत अब ज्यादातर अपना पेट्रोल और डीजल एशियाई देशों को बेच रहा है।
अब यूरोप को पेट्रोल-डीजल की जरूरत है, तो उसकी मदद कौन कर रहा है? मध्य पूर्व के देश आगे आए हैं। वे यूरोप को डीजल और हवाई जहाजों के लिए जरूरी ईंधन (जिसे जेट ईंधन कहते हैं) भेज रहे हैं।
Lal Sagar (Red Sea) में अजीब हालात हो रहे हैं।
Lal Sagar (Red Sea) में अजीब हालात हो रहे हैं। वहां पर व्यापारी जहाजों पर हमले बढ़ गए हैं। इससे लोग डर रहे हैं कि इजरायल और हमास के बीच चल रहा झगड़ा कहीं बड़ा न हो जाए।
अब ये सिर्फ दो देशों का मामला नहीं रह गया है। ईरान भी इसमें शामिल हो रहा है। और तो और, पश्चिमी देश भी इस मामले में कूद रहे हैं।
इस सारी उथल-पुथल की वजह से, Lal Sagar (Red Sea) और स्वेज नहर के रास्ते से जहाज चलाना अब खतरनाक हो गया है। इसलिए, जहाज चलाने वाली कंपनियां इस रास्ते का इस्तेमाल नहीं करना चाहेंगी, कम से कम अगले कुछ समय तक तो नहीं।
पहले की बात:
- यूरोप को ज्यादातर पेट्रोल-डीजल रूस से मिलता था।
- भारत यूरोप को बहुत कम ईंधन बेचता था।
फिर क्या हुआ:
- फरवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया।
- यूरोप ने रूस से तेल और ईंधन लेना बंद कर दिया।
इसके बाद:
- भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदना शुरू किया। वह रूस का सबसे बड़ा ग्राहक बन गया।
- भारत इस तेल को अपनी रिफाइनरियों में पेट्रोल-डीजल में बदलने लगा।
- फिर भारत ने यह पेट्रोल-डीजल यूरोप को बेचना शुरू किया।
- यह सारा ईंधन Lal Sagar (Red Sea) के रास्ते यूरोप पहुंचता था।
स्वेज नहर और Lal Sagar (Red Sea) से होकर रूस का तेल आराम से गुजर रहा है।
- स्वेज नहर और Lal Sagar (Red Sea) से होकर रूस का तेल आराम से गुजर रहा है। इस पर कोई खास असर नहीं पड़ा है।
- ऐसा क्यों है? इसके पीछे कुछ कारण हैं:
- रूस और ईरान दोस्त माने जाते हैं।
- यमन में हौथी नाम के एक गुट के लोग हैं, जो वहां लड़ाई कर रहे हैं।
- ये हौथी लोग ईरान के साथ हैं, और ईरान उनकी मदद करता है।
- तो समझ लीजिए कि रूस, ईरान और हौथी एक तरह से एक टीम में हैं।
- इसलिए हौथी लोग रूस के तेल वाले जहाजों को नुकसान नहीं पहुंचा रहे।
Lal Sagar (Red Sea): कटोना जी की बात
- भारत की तेल कंपनियां रूस से तेल खरीदती हैं। वे सिर्फ यह कहती हैं कि “हमें तेल चाहिए”, लेकिन यह नहीं बताती कि वो कैसे आना चाहिए।
- रूस तय करता है कि तेल कैसे भेजना है। ज्यादातर तेल अभी भी स्वेज नहर से होकर आता है।
- इसका मतलब है कि भारत को आने वाले कुल तेल में से लगभग 40% (यानी हर 100 में से 40 बैरल) अभी भी स्वेज नहर से गुजरता है।
- स्वेज नहर मिस्र में है, और वहां अभी खतरा बना हुआ है।
Lal Sagar (Red Sea): पहले की बात:
- दुनिया में जो कच्चा तेल इधर-उधर जाता था, उसमें से 10% स्वेज नहर और Lal Sagar (Red Sea) से होकर गुजरता था।
- पेट्रोल-डीजल जैसे तैयार माल का 14% इसी रास्ते से जाता था।
Lal Sagar (Red Sea): अब क्या हो रहा है:
- कई बड़ी जहाज कंपनियां इस रास्ते से डर रही हैं।
- वे अब अफ्रीका के चारों ओर घूमकर जा रही हैं।
- इसलिए अब स्वेज नहर से जाने वाले तेल और पेट्रोल-डीजल की मात्रा बहुत कम हो गई है।
Lal Sagar (Red Sea): लेकिन एक अजीब बात:
- रूस का कच्चा तेल अभी भी इसी रास्ते से जा रहा है। यह एक अपवाद है।
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