Maharaja 2024 : अनुराग कश्यप की ‘महाराजा’ फिल्म पर विवाद और मलयालम सिनेमा की प्रशंसा

maharaja 2024 :जहां महाराजा को कहानी और अभिनय के लिए सराहा गया, वहीं फिल्म में हिंसा दिखाने के तरीके पर काफी बवाल हुआ। खासकर औरतों के खिलाफ हिंसा दिखाने को लेकर लोगों ने बहुत आलोचना की। कुल मिलाकर, फिल्म को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आईं – कुछ लोगों ने तारीफ की तो कुछ ने कड़ी टीका-टिप्पणी की।

कश्यप ने अपनी फिल्म महाराजा पर हुए बवाल के बारे में कुछ कहा है।

देखो, अनुराग कश्यप ने अपनी फिल्म महाराजा पर हुए बवाल के बारे में कुछ कहा है। उन्होंने माना कि कुछ लोग इस फिल्म से भड़क गए थे। फिल्म में विजय सेतुपति मुख्य भूमिका में हैं, और खुद कश्यप ने विलेन का रोल किया है।

वैसे, नेटफ्लिक्स पर फिल्म को काफी पसंद किया गया और खूब लोगों ने देखा भी। पर साथ ही इसकी आलोचना भी हुई। कश्यप ने इस बात को स्वीकार किया कि फिल्म ने कुछ लोगों को नाराज कर दिया।

ये रही पूरी कहानी महाराजा फिल्म की: maharaja 2024

लोगों ने फिल्म की कहानी और एक्टिंग की तारीफ की। पर साथ ही, फिल्म में दिखाई गई हिंसा पर काफी बवाल हुआ। खासकर औरतों पर हिंसा दिखाने को लेकर लोगों ने बहुत आलोचना की।

अब इस आलोचना पर अनुराग कश्यप ने क्या कहा? उन्होंने द हिंदू अखबार से बात की। वहां उन्होंने अपनी फिल्म की तुलना करण जौहर और गुनीत मोंगा की फिल्म ‘किल’ से की। ‘किल’ को हाल के समय की सबसे ज्यादा खूनी हिंदी फिल्म कहा गया था।

कश्यप का मतलब था कि अगर ‘किल’ जैसी फिल्म पर इतना बवाल नहीं हुआ, तो फिर उनकी फिल्म पर क्यों? वो शायद ये कहना चाह रहे थे कि फिल्मों में हिंसा दिखाने को लेकर लोगों के रवैये में फर्क है।

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अनुराग कश्यप ने अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया:

मेरी नवीनतम तमिल सिनेमा ने वास्तव में तूफान खड़ा कर दिया। दर्शकों ने हिंसक दृश्यों पर तीखी प्रतिक्रिया दी। फिर भी, मेरा मानना है कि यह अपेक्षित था। कुछ फिल्में स्वभाविक रूप से विवाद उत्पन्न करती हैं – यह कला का एक पहलू है जो कभी-कभी लोगों की भावनाओं को उत्तेजित कर सकता है।

उन्होंने आगे कहा, “मेरा मानना है कि फिल्म में हिंसा इतनी सच्ची और चरम दिखानी चाहिए कि देखने वाले को ऐसा करने से रोक दे।”

मतलब साफ है – कश्यप का कहना है कि फिल्म में हिंसा दिखाने का उनका मकसद लोगों को हिंसा से दूर करना था, न कि उसे बढ़ावा देना। वो चाहते थे कि हिंसा इतनी भयानक दिखे कि लोग उससे घबरा जाएं।

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अनुराग कश्यप ने मलयालम फिल्मों की तारीफ की बात को इस तरह समझा जा सकता है:

कश्यप ने कहा, “यार, मलयालम की फिल्में देखो। वहां के फिल्मकार कैसी नई और अलग कहानियां लेकर आते हैं। उनकी कहानियां बिल्कुल ताजा और असली लगती हैं।”

उन्होंने इस साल की कुछ हिट मलयालम फिल्मों का जिक्र भी किया। जैसे:

  • मंजुम्मेल बॉयज
  • द गोट लाइफ
  • आवेशम
  • प्रेमलु
  • ब्रमायुगम

कश्यप का मतलब था कि मलयालम फिल्म इंडस्ट्री इस साल काफी अच्छा कर रही है। वो शायद ये कहना चाह रहे थे कि बाकी फिल्म इंडस्ट्रीज को मलयालम फिल्मों से कुछ सीखना चाहिए – खासकर नई और रोचक कहानियां बनाने के मामले में।

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अनुराग कश्यप ने जो कहा, उसे इस तरह समझा जा सकता है:

यार, अब मैं हिंदी फिल्मों से ज्यादा मलयालम फिल्में देख रहा हूं। क्यों? उनकी मौजूदगी मेरे दिल में ज्वार-भाटा लाती है।

मलयालम फिल्मों में क्या खास है? वहां के लोग ऐसी कहानियां बनाते हैं जो हर किसी के लिए नई और अलग होती हैं।

और एक बात – वहां के फिल्मकार सिर्फ पैसे कमाने की नहीं सोचते। वो अपनी कला को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं।

देखो न, ब्रह्मयुगम जैसी फिल्म। काले-सफेद में बनाई गई। ऐसी फिल्म और कहीं नहीं बनेगी। इससे पता चलता है कि ये लोग वही फिल्में बना रहे हैं जो वो सच में बनाना चाहते हैं।”

कश्यप का मतलब साफ है – वो मलयालम फिल्मों की क्रिएटिविटी और साहस की तारीफ कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि वहां के फिल्मकार दिल से फिल्में बनाते हैं, न कि सिर्फ पैसे के लिए।

अनुराग कश्यप ने मलयालम और बॉलीवुड फिल्मों के बारे में जो कहा,

मलयालम सिनेमा की मसाला फिल्में अत्यंत उत्कृष्ट होती हैं। उनका दर्शन करना एक आनंददायक अनुभव है।

जैसे ‘आवेश’ फिल्म लो। उन्होंने तीन मोटे-तगड़े लोगों को मुख्य रोल दिए। कोई हिचक नहीं दिखाई।

अब बॉलीवुड की बात करें तो वहां क्या होता है? बड़े-बड़े स्टार्स को ले आते हैं। फिर बस उन्हीं पर फोकस करते हैं। असली कहानी गायब हो जाती है।”

कश्यप का मतलब है कि मलयालम फिल्मों में कहानी को ज्यादा महत्व दिया जाता है, चाहे वो कमर्शियल फिल्म हो या आर्ट फिल्म। वहीं बॉलीवुड में अक्सर स्टार्स पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है, कहानी पर कम। वो शायद ये कहना चाह रहे हैं कि बॉलीवुड को भी कहानी पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।

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अनुराग कश्यप ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के बारे में जो कहा,

“देखो, हिंदी फिल्मों की एक बड़ी दिक्कत है। वो क्या? वो बार-बार एक ही तरह की फिल्में बनाते रहते हैं। जैसे कोई फॉर्मूला हो।

पर कभी-कभी कुछ हटके फिल्में भी आती हैं। जैसे:

  • लापता लेडीज
  • 12वीं फेल
  • किल

इन फिल्मों में कुछ नया करने की कोशिश की गई।

‘किल’ की बात करें तो वो एक एक्शन फिल्म थी, पर बहुत अलग किस्म की। ऐसी फिल्म पहले नहीं बनी थी।”

कश्यप का मतलब है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में ज्यादातर एक ही तरह की फिल्में बनती हैं। पर जब कोई नई तरह की फिल्म आती है, तो वो इस आम चलन से अलग होती है। वो शायद ये कहना चाह रहे हैं कि हिंदी फिल्मों में और ज्यादा नए प्रयोग होने चाहिए।

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